बुधवार, 11 जुलाई 2012

रहस्यमय है कुण्डलनी जागरण

रहस्यमय है कुण्डलनी जागरण // जिस प्रकार एक परुमाणु के बिखंडन करने पर उसमे से असीम शक्ति उत्पन्न होती है वैसे ही मानव देह में कुण्डलनी जाग्रत होने पर उसमें  दैवी  शक्ति का प्रदुर्भाब होता है / शास्त्रों में लिखा है //    ; सशैल वन धत्रिनाम यथा धरोहिनायकम सर्वेषां योग तान्त्रनाम तथा धारोही कुंडली //;; जिस प्रकार समस्त पृथ्वी .वन .पर्वत  आदि आधार अधिनायक विष्णु है . उसी प्रकार समस्त योग और तंत्र का आधार कुण्डलनी है / ; यत पिण्डे तट ब्रम्हंडे ; पूरा ब्रम्हाण्ड मनुष्य के शरीर में ही विद्ममान है   / आवश्यकता है इसे जानने की / हमारे मष्तिष्क में लाखो छोटे छोटे सेल है , पर इनमे से केवल एक दो प्रतिशत सेल ही जागृत है . बाकी सारे सेल या ग्रंथिया सुप्तावस्था में है / इन सेलो में आस्चर्यजनक गुण और प्रभाव है / हमारे पूर्वज ऋषियों में कुण्डलनी जाग्रत था फलतः वे असाधारण कार्य करते थे .जिसे सुनकर विस्वाश नहीं होता की ऐसा भी संभव है ? / डॉकटरो और शरीर बैज्ञानिको ने शरीर के वाह्य अंगो और उससे सम्बंधीत रोगों के वारे में तो थोड़ी वहुत जानकारी प्रात की है परन्तु इससे भी एक बरी दुनिया हमारे शरीर में बिद्यमान है / योगियों के अनुसार समस्त ब्रम्हांड और उसमे होने वाली हलचल हम अपने शरीर में देख सकते है / ... शरीर में मूलतः सात चक्र है जो की अत्यंत महत्वपूर्ण है . और इन चक्रों का भेदन करना ही ब्रम्हाण्ड को समझना है / मूलाधार .स्वधिस्थान . मणिपुर .अनाहत . विसुधि .आज्ञा चक्र एवं सह्स्त्रार . ये सभी चक्र अपने आप में सुप्तावस्था में है / परन्तु विशेष क्रिया द्वारा तथा गुरू के सहयोग से इन चक्रों को जगाने की क्रिया प्रारम्भ की जाती है / कुंडलनी सक्ति का निवास मूलाधार चक्र में है / यह मूलाधार चक्र रीढ़ की हड्डी के सवसे निचले छोर में है / यहा भूलिंग है जो साढ़े तीन कुंडल मारकर सर्प के सामान सोया पड़ा है . उसका मुख नीचे की तरफ है / साधक जब इस शक्ति को जगा देता है . बन्धन कटने लगते है .और उर्ध्व गती आरंभ हो जाती है // जब ये चक्र जागते है तो बिचित्र और विबिध अनुभब प्राप्त होते है . साधक को स्वतः ही काव्यस्फुरण होने लगता है /नवीन कबिताये उसके मुह से उच्चारण होने लगता है .वह विश्व के किसी भी स्थान में सुछम शरीर द्वारा सेकेण्ड में कोई दृश्य देख सकने में समर्थ होता है / वह त्रिकालदर्शी बन जाता है / स्वतः ही वेद मंत्र उच्चारण होने लगता है / हमारे सिर के मध्य भाग में उल्टा छाते की तरह का गुम्बज है जो अधो मुखी है . और उसमे से निरन्तर रस प्रवाहित होता रहता है / इसमें हज़ार से भी ज्यादा छेद होते है / इसलिए इसको सहस्त्रार कहा गया है / जब कुंडलनी इडा और पिंगला नाड़ियो के मध्य से सुषुम्ना को साथ लेकर सहस्त्रार तक पहुचती है .तब सहस्त्रार गुम्बद से टकराती है .टकराने से उनमे से रस झरने लगता है . जो की अमृत रस होता है / यह अमृत रस इन नाड़ियो के माध्यम से पुरे शरीर में फैल जाता है और सारा शरीर स्वस्थ . निरोग . तेजस्वी तथा प्रकाशयूक्त हो जाता है / उसके चेहरे पर एक ऐसा तेज . आभामंडल बन जाता है . जैसा की देवताओ के सिर के चारो ओर दिखाई देता है / साधक को स्वतः ही वाक सिद्दी प्राप्त हो जाती है / वह किसी को श्राप या वरदान दे तो पूर्ण होता है / वह समाज में नेतृत्व प्रदान कर सकता है / एक नई दिशा दृष्टी देकर सैकरो हजारो लोगो का पथ प्रदर्शन करने की छमता प्राप्त कर लेता है /  कुण्डलनी जागृत होने पर व्यक्ति के ज्ञान का कितना विस्तार हो जाता है . इसको शव्दों में व्यक्त करना कठीन है // 

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