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सोमवार, 16 जुलाई 2012
शनिवार, 14 जुलाई 2012
गृह सज्जा बास्तु के आईने में
वास्तु अनुरूप भवन निर्माण के साथ ही वास्तु अनुरूप गृह सज्जा भी हो तो भवन स्वामी एवम वहा के निवाशियों के लिये अधिक शुभ फलदायक हो जाता है / गृह सज्जा के प्रमुख सूत्र - 1*. दीवारों का रंग ऐसा होना चाहिए जो ज्योतिष दृष्टि से अनुकूल हो / 2*. पूजा गृह हमेशा ईशान कोण में बनाये / 3*.रशोई अग्नि कोण में होनी चाहिए / 4*. सयन कच्छ दछिन -पश्चिम में बनाये , बैठक उत्तर - पूर्ब या या उत्तर पश्चिम में ही बनाए / 5*. बच्चो का कमरा उत्तर -पूर्व या दछिन -पूर्व में बनाये / 6*. अन्डरग्रौन्ड पानी का टेंक उत्तर - पूर्ब या उत्तर में ही बनाये / 7*. ओवरहेड पानी की टंकी दछिन पश्चिम में ही रखे / 8*. सीढ़ी घडी की सुइयो की दिशा में बनानी चाहिए / 9*. उत्तर - पूर्व में खली जगह अधिक छोड़े / 10* उत्तर व पुरव में भाडी निर्माण न करे / 11* मेन गेट प्लोट के बीचो बिच नहीं होना चाहिए . तथा उत्तर -पूर्व में बनाये / 12* मकान में पानी का ढलान उत्तर या पूर्व में होना चाहिये / 13* कभी भी अग्नि कोण में पुजा या शौचालय न बनाए / 14* कभी भी अन्डरग्रौंड पानी का टैंक अग्नि कोण में न बनाये / 15* शौचालय कभी भी उतर -पूर्व ईशान में न बनाए / 16* वास्तु शास्त्र में मुख्य द्वार दिशा का निर्णय अतिमहत्वपूर्ण है / गृहस्वामी की राशी के अनुसार कर्क . ब्रिस्चिक एवं मीन राशी वालो को मुख्य द्वार की दिशा पूर्व / वृषभ .तुला . कुम्भ राशी वालो को पश्चिम / मेष . सिंह . धनु की ऊतर तथा मिथुन कन्या .मकर राशी वालो गृह स्वामी को मुख्य द्वार की दिशा दछिन रखना शुभ है / मकान का मुख्य द्वार एक ही होना चाहिए / 17* लग्नेश के रंग का प्रयोग दीवारों पर होने से स्वास्थ्य उत्तम रहता है . तथा रोगी व्यक्ति शिघ्र स्वस्थ्य लाभ प्राप्त करता है / 18* परामर्श कार्य . मानसीक क्रिया प्रदान कार्यो के लिए राशी के अनुकूल रंग का प्रयोग दीवारों पर अवं पर्दों के रंग का चुनाव करना चाहिए / 19* भवन में किसी कड़ी या वीम के निचे बैठना एवं सोना अनुकूल नहीं है /20* सोते समय सिरहाना सदैब दच्छीण में तथा पैर उतर में रखे / 21* वास्तु के अनुसार घर में तुलसी रोपण एवं द्वार पर कुमकुम से स्वास्तिक चिन्ह भी आवस्यक है / तुलसी का पौधा कृमिनाशक है / यह अपने चारों ओर सौ हाथ तक के वायुमंडल को शुद्ध रखता है /
गुरुवार, 12 जुलाई 2012
ज्योतिष द्वारा मनपसन्द सन्तान कैसे
मनचाही सन्तान लड़का या लड़की उत्पन्न करना हमारे वश की बात है बसर्ते हमें इस विषय पर प्रयाप्त और ठीक ठाक जानकारी हो । शास्त्र सम्मत बिधी बिधान के अनुसार मन पसन्द सन्तान की उत्पत्ती कैसे हो इस पर चर्चा हम यहाँ करेंगे । सभी दम्पति यह चाह्ते है की उनकी सन्तान स्वस्थ , सुन्दर और बुद्धिमान हो , साथ ही साथ दम्पति खुद निर्णय करे की उन्हे पुत्र चाहिए या पुत्री , लेकिन यह वहुत कम दंपत्ति जानते है की ऐसा कैसे हो सकता है । यह जो बिधी हम बताने जा रहे है यह 100 प्रतिशत सफल सिद्ध हुयी है एक दम्पति ने इस बिधी का पालन किया फलस्वरूप ( पांच पुत्रियों के बाद) पुत्र उत्पन्न करने में सफलता पाई । मेरा मकसद लिंग संतुलन बिगारना नहीं है । एक दम्पती जिसे तीन पुत्र था उन्हें एक पुत्री की चाह थी इश बिधी का प्रयोग से पुत्री हुयी । ऐसे अनेक प्रमाण है , यह अनुभब सिद्ध प्रयोग है , । गर्भ धारण संस्कार का उचित समय दो बातो पर निर्भर करता है । आपको लड़का चाहिए या लड़की । पुत्र को जन्म देने की इछा से किये जाने बाले गर्भधारण संस्कार का उचित समय ... एक तो यह की उस समय शुक्ल पछ ( चाँदनी रात वाला ) हो और दुसरी यह है की जिस दिन पत्नी का मासिक धर्म सुरु हुवा हो उस दिन रात को पहली रात मानकर गिनने पर आठमी , दशमी , बरहमी , या चौदहमी रात हो । यह तो हुयी मोटी बात , मुख्य और जरुरी बाते जिसका पालन होना अनिवार्य होता है वह यह की इस गणित के अनुसार आगामि महीनो में ऐसा संयोग कब बनेगा । जब इधर स्त्री का मासिक धर्म शुरू हो और उधर शुक्ल पक्छ की एकंम तिथि (परवा ) एक ही ही दिन पड़ जाये / एक दो दिन आगे पीछे भी शुरू हो तो कार्य सिद्ध होने में कोई बाधा नहीं पड़ती / गणित के इस बिबरण को फर्मुला मान ले और जब भी पत्नी का ऋतुस्राव शुक्ल पछ की तिथियों से संयोग कार्यक्रम निर्धारीत कर ले / अवं अच्छी तैयारी के साथ अनुकूल रात्रियों में गर्भधान संस्कार आयोजित करे / सारे प्रयत्न निष्ठां पुर्बक और सतर्कता के साथ करे और फल भगवान पर छोड दे \ प्रायः संतान न होने के लिए स्त्री ( पत्नी ) को दोषी ठहराया जाता है और बदनाम भी किया जाता है / यदि पुरुष के सुक्र में पर्याप्त शुक्राणु नहीं हो .गर्भ स्थापित न होने का कारण स्त्री नहीं पुरुष होगा / नये बैज्ञानीक अनुसन्धान के आधार पर कहा जा सकता है . की व्यक्ती अपनी इछा से लड़का या लड़की पैदा कर सकता है . इस बात के वैज्ञानीक प्रमाण मिल चुके है . / स्त्री के अंडे ( ovum ) में केवल ( X ) क्रोमोसोम पाये जाते है . जबकि पुरुष में X और Y दोनों क्रोमोशोम्स होते है / यदि X और Y क्रोमोशोम्स का संजोग हो तो लड़का शरीर बनता है / और यदी गर्भधान के समय पुरुष के शुक्र में X क्रोमोशोम्स गैर मौजूद हुवा तो गर्भधान लड़की का हो जायेगा / भारतीय जयोतिष के अनुसार शुक्ल पछ के समय सम संख्या बाली आठवी .दशवी . बारहमी . अदि रात्रियो में गर्भधान करने से पुत्र प्राप्ति का बिधान बताया गया है / इन रात्रियो में चंद्रमा के प्रभाव से शुक्र में X क्रोमोशोम्स की उपस्थीती बनी रहती है / बैज्ञानिको के अनुसंधानानुसार चन्द्रमा के प्रभाब से पुरुषो के शुक्र में X क्रोमोसोम्स प्रयाप्त मात्रा में मौजुद पाई गई एवं बिशम रात्रियों में Y क्रोमोशोम्स की अधिकता थी / स्त्री अपने मासिक अबधी के 12 वे से 14 वे दिन के मध्य अत्यधिक प्रजनन सामर्थ्य रखती है /यदि पुत्र उत्पन्न करने की अभिलाषा हो तो पति व पत्नी को बड़े सयम के साथ गर्भधान के लिए सतर्कता पूर्वक नियम का पालन करते हुवे स्त्री के मासिक धर्म का पहला या दूसरा दिन शुक्ल पछ की पहली व दूसरी तिथि के साथ साथ पड़े तो सर्वाधीक प्रजनन छमता बाले 12 वे एवम 14 वे रात पुरुष के शुक्र में भी Y क्रोमोसोम्स सर्वाधिक सघन मात्रा में उपलब्ध रहते है . जो पुत्र उत्पती के लिए अति आवश्यक और मूल कारक है / जब यह संयोग बने तभी 12 वे 14 वे दिनों में गर्भधान संस्कार होना चाहिये / अन्य दिनों में गर्भधान होने से कन्या सन्तान की सम्भाबना अधिक रहती है / यह ध्यान रखने की बात है की मासिक धर्म का पहला या दुसरा दिन शुक्ल पछ की पहली या दूसरी तिथि हो और 12 वे .. 14 वे दिनों के पहले या बाद में पुरुष ब्रम्हचर्य का पालन करे या गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करे //
बुधवार, 11 जुलाई 2012
रहस्यमय है कुण्डलनी जागरण
रहस्यमय है कुण्डलनी जागरण // जिस प्रकार एक परुमाणु के बिखंडन करने पर उसमे से असीम शक्ति उत्पन्न होती है वैसे ही मानव देह में कुण्डलनी जाग्रत होने पर उसमें दैवी शक्ति का प्रदुर्भाब होता है / शास्त्रों में लिखा है // ; सशैल वन धत्रिनाम यथा धरोहिनायकम सर्वेषां योग तान्त्रनाम तथा धारोही कुंडली //;; जिस प्रकार समस्त पृथ्वी .वन .पर्वत आदि आधार अधिनायक विष्णु है . उसी प्रकार समस्त योग और तंत्र का आधार कुण्डलनी है / ; यत पिण्डे तट ब्रम्हंडे ; पूरा ब्रम्हाण्ड मनुष्य के शरीर में ही विद्ममान है / आवश्यकता है इसे जानने की / हमारे मष्तिष्क में लाखो छोटे छोटे सेल है , पर इनमे से केवल एक दो प्रतिशत सेल ही जागृत है . बाकी सारे सेल या ग्रंथिया सुप्तावस्था में है / इन सेलो में आस्चर्यजनक गुण और प्रभाव है / हमारे पूर्वज ऋषियों में कुण्डलनी जाग्रत था फलतः वे असाधारण कार्य करते थे .जिसे सुनकर विस्वाश नहीं होता की ऐसा भी संभव है ? / डॉकटरो और शरीर बैज्ञानिको ने शरीर के वाह्य अंगो और उससे सम्बंधीत रोगों के वारे में तो थोड़ी वहुत जानकारी प्रात की है परन्तु इससे भी एक बरी दुनिया हमारे शरीर में बिद्यमान है / योगियों के अनुसार समस्त ब्रम्हांड और उसमे होने वाली हलचल हम अपने शरीर में देख सकते है / ... शरीर में मूलतः सात चक्र है जो की अत्यंत महत्वपूर्ण है . और इन चक्रों का भेदन करना ही ब्रम्हाण्ड को समझना है / मूलाधार .स्वधिस्थान . मणिपुर .अनाहत . विसुधि .आज्ञा चक्र एवं सह्स्त्रार . ये सभी चक्र अपने आप में सुप्तावस्था में है / परन्तु विशेष क्रिया द्वारा तथा गुरू के सहयोग से इन चक्रों को जगाने की क्रिया प्रारम्भ की जाती है / कुंडलनी सक्ति का निवास मूलाधार चक्र में है / यह मूलाधार चक्र रीढ़ की हड्डी के सवसे निचले छोर में है / यहा भूलिंग है जो साढ़े तीन कुंडल मारकर सर्प के सामान सोया पड़ा है . उसका मुख नीचे की तरफ है / साधक जब इस शक्ति को जगा देता है . बन्धन कटने लगते है .और उर्ध्व गती आरंभ हो जाती है // जब ये चक्र जागते है तो बिचित्र और विबिध अनुभब प्राप्त होते है . साधक को स्वतः ही काव्यस्फुरण होने लगता है /नवीन कबिताये उसके मुह से उच्चारण होने लगता है .वह विश्व के किसी भी स्थान में सुछम शरीर द्वारा सेकेण्ड में कोई दृश्य देख सकने में समर्थ होता है / वह त्रिकालदर्शी बन जाता है / स्वतः ही वेद मंत्र उच्चारण होने लगता है / हमारे सिर के मध्य भाग में उल्टा छाते की तरह का गुम्बज है जो अधो मुखी है . और उसमे से निरन्तर रस प्रवाहित होता रहता है / इसमें हज़ार से भी ज्यादा छेद होते है / इसलिए इसको सहस्त्रार कहा गया है / जब कुंडलनी इडा और पिंगला नाड़ियो के मध्य से सुषुम्ना को साथ लेकर सहस्त्रार तक पहुचती है .तब सहस्त्रार गुम्बद से टकराती है .टकराने से उनमे से रस झरने लगता है . जो की अमृत रस होता है / यह अमृत रस इन नाड़ियो के माध्यम से पुरे शरीर में फैल जाता है और सारा शरीर स्वस्थ . निरोग . तेजस्वी तथा प्रकाशयूक्त हो जाता है / उसके चेहरे पर एक ऐसा तेज . आभामंडल बन जाता है . जैसा की देवताओ के सिर के चारो ओर दिखाई देता है / साधक को स्वतः ही वाक सिद्दी प्राप्त हो जाती है / वह किसी को श्राप या वरदान दे तो पूर्ण होता है / वह समाज में नेतृत्व प्रदान कर सकता है / एक नई दिशा दृष्टी देकर सैकरो हजारो लोगो का पथ प्रदर्शन करने की छमता प्राप्त कर लेता है / कुण्डलनी जागृत होने पर व्यक्ति के ज्ञान का कितना विस्तार हो जाता है . इसको शव्दों में व्यक्त करना कठीन है //
मंगलवार, 10 जुलाई 2012
TANTRA
तंत्र शास्त्र में पंचमकार // आज तंत्र के छेत्र में दो नाम प्रायः सुनने में आते है // 1.कौल 2.वाम मार्ग सर्व साधारण में यह धारणा फैलाती चली गई की तन्त्र में मांस मदिरा मैथुन आदि पंचमकार के उपयोंग में लिप्त रह्कर जीवन व्यतीत करना ही तंत्र है // आज के परिपेछ्य में कुछ लोग तंत्र बेत्ता होने का ढोंग रच कर सच्चे साहित्य के बिपरीत अर्थ करते दिखाई देते है // क्या वैदिक व पौराणिक काल में नर बलि ,पशु बलि व मदिरा सेवन अवास्य्क था // क्या बाम मार्ग ,तंत्र शास्त्र में पंचमकार (मद्द ,मांस , मत्श्य ,मुद्रा व मैथुन ) क्या वास्तविक थे // आईये आज इस विषय पर कुछ चिन्तन मनन करे // 1.मांस ..एक परिभषिक सव्द है // जब उरद के दाल को दही के साथ मिला दिया जाता है तो उसे रूढी अर्थ में मांस या बली अन्न भी कहते है //पिछिली कई पीढियों से हमारा परिवार ज्योतिष .तंत्र व कर्मकाण्ड में अग्रगण्य रहा है और यह मेरा परम सोभाग्य है की मेरा जन्म उस परिवार में हुवा जगत गुरू शंकराचार्य सारे भारत में सास्त्रथ के लिए भ्रमण करते हुवे मंडन मिश्र के दर पर पहुचे जहा तोता भी संस्कृत में बोलता था //पानी भरने वाली नोकरानी भी संस्कृत में बात करती थी // पिछली नव पीढियों से मंडन मिश्र परिवार ब्राह्मणों के कुलगुरु के रूप में प्रतिष्ठित है // हजारो यज्ञ हमारे परिवार द्वारा सम्पन्न कराये गये है एवं कराये जाते रहेंगे / परन्तु मद्द मांस प्रयोग हमने कभी नहीं देखा /यज्ञ की पूर्णाहुति के समय दिक्पाल्बली होती है / उस समय उरद व मसूर की दाल को दही में मिलाकर पीपल के पत्तो पर घृत दीप से यूक्त करके दशो दिशाओ में रखा जाता है // उसे मांस बली कहते है / पिछले हजारो वर्षो से यही क्रम चलता आ रहा है / साक्त यज्ञ में मधु की आहुति दी जाती है / मधु का अर्थ केवल शहद है .पुष्पों का रस अब यदि कोई मधु का अर्थ मदिरा कर दे / तो यह उसकी बुधि की बलिहरी है // ,,,,,मद्म मांसं च मुद्रा मैथुनेव च मकार पञ्चकं प्रहुयोगिनामुक्तिदाय्कम ,,// इस पन्च्मकारो का रह्श्य बहुत गुढ़ है / वास्तव में यह अभ्यन्तर अनुष्ठान के प्रतीक है / जो कोई उन्हें भौतिक अर्थ में प्रयोग करता है वह यथार्थ से वहुत ही दूर है / *मद्य का अर्थ सराब नहीं ब्राम्हरंध में स्थित जो सहस्त्रार है उसमे जो सुधा छरित होती है उसे ही मद्द कहते है / उसी को पीने वाला वयक्ति मदप कहलाता है यह खेचरी मुद्रा के द्वारा सिद्ध होता है / इसीलिए तंत्रों का कथन है ,,वयोम्पंक्ज निश्य्द सुधापंरातोनर .मधुमाई समः //
सोमवार, 9 जुलाई 2012
ASTROLOGY SCINCE
ऋग्वेद में 95000 वर्ष पूर्ब ग्रह नाच्छात्रो की जैसी स्थिति थी उसका उल्लेख है / इसी आधार पर लोक मान्य बालगंगाधर तिलक ने यह तय किया था की वेद इतने हज़ार वर्ष से जयादा पुराने तो निश्चित होने चाहिए / क्योकि वेद में यदि 95000 बर्ष से पहले जैसी ग्रह नछत्रो की स्थिति थी उसका उल्लेख है .तो यह वात साफ है की ज्योतिष कम से कम 95000 वर्ष से ज्यादा पुराना है / भारतीय ही ज्योतिष शास्त्र के आदि अविस्कारकर्ता है /यहाँ के ऋषियों ने योगाभ्याश द्वारा अपनी सूक्छ्म प्रज्ञा से सरीर के भीतर ही सौर मंडल के दर्शन किये और आकासीय सौर मंडल का अध्यन किया // ज्योतिष गणना के लिए ही सबसे पहले गणित का जन्म हुवा और इसीलिए अंक गणित के जो अंक है वह भारतीय है / सारी दुनिया की भाषाओ में .एक से लेकर नो तक (1 से 9) जो गणना के अंक है वह भारतीय है ./ और सारी दुनिया में 9 डिजिट स्वीकृत हो गये // आर्यभट 0 का आविष्कार कर सारी दुनिया में तहलका मचा दिया /जिससे गणना वहुत आसान हो गया / उसने भारत का नाम विश्व में उचा कर दिया // वैज्ञानिको का मत है की प्रत्येक पदार्थ की सुच्छम रचना का आधार परमाणु है /अनन्त परमाणु का एकत्र स्वरुप हमारा शरीर है / इस लिए हमारे ऋषियों ने यत पिंडे तत ब्रम्हंडे का सिधान्त बताया // अतः सौर जगत में सूर्य .चन्द्र आदि ग्रह के भ्रमण करने के जो नियम है वे ही नीयम प्राणी मात्र के शरीर में स्थित प्राण कोष को प्रभाबित करते है .जैसे हम साँस खुद नहीं लेते बल्कि स्वंश प्रस्वाश की क्रिया खुद व खुद होती है ,हम खाना खाने के बाद पचाते नहीं वल्कि खुद हमारे शरीर की आन्तरिक क्रियाये अपने आप होती रहती है जो जिने के लिये जरुरी है / क्योकि सूर्य से पृथ्वी का जन्म हुवा .पृथ्वी पर जीवन का जन्म हुआ मनुष्य पृथ्वी का अंग है .पृथ्वी सूरज का अंग है सूर्य से ही मंगल .ब्रहस्पति का जन्म हुआ // अतः सभी ग्रह उपग्रह एक दुसरे के अकर्षित होते है .अतः चन्द्रमा पृथ्वी का चक्कर काटता है पृथ्वी सूर्य का मंगल बुध .गुरू .शुक्र और शनि ये पांचो ग्रह भी सूर्य के चारो ऑर भ्रमण करते रहते है / इस कारण इनकी पृथ्वी से दुरी बढ़ती घटती रहती है .जिसका प्रभाव पृथ्वी पर रहने वाले जीब जन्तुवो पर परता है .ऋतुवे बदलती है //
रविवार, 8 जुलाई 2012
SRAVAN ME SIV PUJA
बुधवार, 4 जुलाई 2012
kal sarp yog
NAAG PANCHMI
श्रावण शुक्ल पंचमी को नाग पंचमी के रुप में हमारे देश में त्यौहार मानाने का विधान है काल शर्प दोष के संती के लिये नाग पन्चमी सर्ब श्रेस्ठ तिथी नाग पंचमी है अगर आपके कुण्डली में काल सर्प योग है तों ज़रूर इस दिन काल सर्प योंग का शान्ती करे काल सर्प योग कुण्डली में उस स्थिती में बनता है जब कुण्डली के समस्त ग्रह राहू और केतू के माध्य हो काल सर्प योग मुखयतः बारह प्रकार के होते है ,जिसका बिभिन्न लग्नो पर अलग अलग प्रभाव परता है .जैसे 1.अनन्त ,2.कुलिक .3वासुकी ,4.संखपाल .5.पदम ,6.महपद्म ,7.तचक .8.करकोटक .9.संखनाद .10.पातक ,11.विषाक्त ,12सेष नाग \\इसकी सन्ति कराने से ये दोष सांत हो जाता है
sravan
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