#पंचागुली_साधना_विधान ।।
#पंडित_पंकजमिश्रज्योतिष कोलकाता कालीघाट नाट मंदिर ।।
1. इस साधना को करने के लिए ‘पंचांगुली यंत्र व चित्र’ तथा ‘स्फटिक माला’, जो प्राण प्रतिष्ठायुक्त एवं मंत्र-सिद्ध हो, प्रयोग करना आवश्यक होता है।
#नवरात्री मे #पंचागुली _साधना से #सिद्ध मिलती है ।।
2. यह साधना शुक्ल पक्ष की किसी भी द्वितीया, पंचमी, सप्तमी या पूर्णमासी को की जा सकती है।
3. यह साधना प्रातः कालीन है, इसे ब्रह्म मुहूर्त में ही करना चाहिए।
4. इस साधना को किसी एकांत स्थल या पूजा स्थल में ही, जहां शोर न हो, सम्पन्न करना चाहिए। यह सात दिन की साधना है।
5. पीले आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके, पीले वस्त्र धारण कर तथा गुरु चादर ओढ़ कर बैठ जायें।
6. फिर एक बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर गुरु चित्र/पादुका/ अथवा यंत्र स्थापित करें। उसी बाजोट पर ‘पंचांगुली देवी का चित्र व यंत्र’ भी स्थापित कर दें। यंत्र को किसी ताम्र प्लेट में रखें।
7. सबसे पहले गणपति का ध्यान करें, फिर गुरुदेव निखिल का ध्यान, स्नान, पंचोपचार पूजन सम्पन्न कर, गुरु माला से गुरु मंत्र की 1 माला जप करें।
8. गुरु पूजन के पश्चात् षोडशोपचार पूजन हेतु यंत्र पर कुंकुम से ‘स्वस्तिक’ का चिह्न बनायें।
9. निम्न प्रकार षोडशोपचार विधि से यंत्र का विधिवत् पूजन करें –
ध्यान
ॐ भूभुर्वः स्वः श्री पंचांगुली देवीं ध्यायामि।
आह्वान
ॐ आगच्छाच्छ देवेशि त्रैलोक्य तिमिरापहे।
क्रियमाणां मया पूजां गृहाण सुरसत्तमे॥
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री पंचांगुली देवताभ्योः नमः आह्वाहनं समर्पयामि।
आसन
रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्य करं शुभम्।
आसनञ्च मया दत्तं गृहाण परमेश्वरीं॥
ॐ भूभुर्वः स्वः श्री पंचांगुली देवताभ्यो नमः आसनं समर्पयामि।
स्नान
गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदा जलैः।
स्नापिताऽसि मया देवि तथा शान्तिं कुरुष्व मे॥
पयस्नान
कामधेनु समुत्पन्नं सर्वेषां जीवनं परम्।
पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम्॥
दधिस्नान
पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्।
दध्यानीतं मया देवि स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्॥
मधुस्नान
तरुपुष्प समुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु।
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्॥
घृतस्नान
नवनीत समुत्पन्नं सर्वसन्तोष कारकम्।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्॥
शर्करास्नान
इक्षुरस समुद्भूता शर्करा पुष्टिकारिका।
मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्॥
वस्त्र
सर्वभूषाधिके सौम्ये लोक लज्जा निवारणे।
मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रति गृह्यताम्
गन्ध
श्री खण्ड चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्।
विलेपनं सुरश्रेष्ठि चन्दनं प्रति गृह्यताम्॥
अक्षत
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठि कुकुम्माक्ता सुशोभिता।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि॥
पुष्प
ॐ माल्यादीनि सुगंधीनि मालत्यादीनि वै विभे।
मयाहृतानि पुष्पाणि प्रीत्यर्थं प्रति गृह्यताम्॥
दीप
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेशि त्रैलोक्य तिमिरापहे॥
नैवेद्य
नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्तिं मे ह्यचला कुरु।
ईप्सितं मे वरं देहि परत्रेह परां गतिम्॥
दक्षिणा
हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः।
अनन्तः पुण्य फलदमतः शांतिं प्रयच्छ मे॥
विशेषार्घ्य
नमस्ते देवदेवेशि नमस्ते धरणीधरे।
नमस्ते जगदाधारे अर्घ्यं च प्रति गृह्यताम्।
वरदत्वं वरं देहि वांछितं वांछितार्थदं।
अनेन सफलार्घैण फलादऽस्तु सदा मम।
गतं पापं गतं दुःखं गतं दारिद्र्यमेव च।
आगता सुख सम्पत्तिः पुण्योऽहं तव दर्शनात्॥
10. हाथ में जल लेकर मंत्र-जप करने का संकल्प करें।
11. निम्नलिखित पंचांगुली मंत्र का ‘स्फटिक माला’ से 7 दिन तक एक-एक माला मंत्र-जप करें।
मंत्र
॥ ॐ ठं ठं ठं पंचांगुलि भूत भविष्यं दर्शय ठं ठं ठं स्वाहा ॥
12. मंत्र-जप करने का समय निर्धारित होना चाहिए।
13. जप काल में ध्यान रखने योग्य बातें –
* इस साधना को तभी सम्पन्न करें, जब आप दृढ़ चित्त हों, आपका निश्चय पक्का हो और संघर्षों से जूझने की शक्ति हो।* गृहस्थ साधना काल में स्त्री सम्पर्क न करें, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें।* साधना काल में असत्य भाषण न करें। * मंत्र जप के समय बीच में उठें नहीं। * गुरु के प्रति आस्थावान होकर, गुरु पूजन के पश्चात् ही साधना सम्पन्न करें। िं तामसिक भोजन से दूर रहें।* मंत्रोच्चारण शुद्ध व स्पष्ट हो।* यदि साधना पूरी होने पर भी सफलता न मिले, तो झुंझलावें नहीं, बार-बार प्रयत्न करें।
14. साधना-समाप्ति के पश्चात् समस्त सामग्री को किसी नदी या कुंए में विसर्जित कर दें।#pankaj.
इस प्रकार पूर्ण विश्वास के साथ की गई साधना से मंत्र की सिद्ध होती ही है तथा उस साधक को भूत, भविष्य एवं वर्तमान की सिद्धि हो जाती है। पंडित पंकज मिश्र ज्योतिष कोलकाता कालीघाट नाट मंदिर ।। सभी ज्योतिष को ये पंचांगुली साधना नवरात्रि मे जरूर करना चाहिए ।
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