नाड़ी दोष #जन्मकुंडली मे ।।
#पंडित_पंकज_मिश्र_ज्योतिष_कोलकाता ।।
नाड़ी दोष होने पर अक्सर भावी दम्पती का गुण मेलापक मान्य नहीं होता है, इसका मुख्य कारण यह है कि 36 गुणों में से नाड़ी के लिए सबसे अधिक आठ गुण निर्धारित हैं। मेलापक में नाड़ी के द्वारा भावी दम्पति की मानसिकता व मनोदशा का मूल्यांकन किया जाता है। नाड़ी दोष होने पर वर-वधू में पारस्परिक विकर्षण पैदा होता है और संतान पक्ष के लिए यह दोष हानिकारक हो सकता है। नाड़ी दोष का परिहार (काट) यदि वर कन्या की कुंडली में उपलब्ध हो तो ऎसे में विवाह करना शास्त्रसम्मत है।
क्या है नाड़ी और दोष ?
भारतीय ज्योतिष में नाड़ी का निर्धारण जन्म नक्षत्र से होता है। प्रत्येक नक्षत्र में चार चरण होते हैं। नौ नक्षत्रों की एक नाड़ी होती है। जन्म नक्षत्र के आधार पर नाडियों को तीन भागों में विभाजित किया गया है, जिन्हें आद्य (आदि), मध्य और अन्त्य नाड़ी के नाम से जाना जाता है। यदि किसी का जन्म पुष्य नक्षत्र में हुआ हो तो उसकी मध्य नाड़ी होगी। इसी प्रकार अन्य सभी 27 नक्षत्रों का नाडियों में विभाजन निम्न प्रकार किया गया है।
आद्य नाड़ी: अश्विनी, आर्द्रा, पुर्नवसु, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद।
मध्य नाड़ी: भरणी, मृगशिर, पुष्य, पूर्वाफाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा, उत्तराभाद्रपद।
अंत्य नाड़ी: कृतिका, रोहिणी, आश्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण और रेवती।
ब्राह्मण राशि पर प्रभावी!
ज्योतिष शास्त्र में समस्त राशियों को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण (जाति) में विभाजित किया गया है। मेष, सिंह, धनु क्षत्रिय वर्ण, वृष, कन्या, मकर वैश्य वर्ण, मिथुन, तुला, कुंभ शूद्र वर्ण और कर्क, वृश्चिक, मीन राशियां ब्राह्मण जाति की हैं। अत: स्पष्ट है कि किसी भी जाति में जन्मे वर वधु की जन्म राशि यदि कर्क, वृश्चिक, मीन (ब्राह्मण जाति की) है तो इन राशियों के जातकों को नाड़ी दोष अधिक प्रभावित करेगा।
#नाड़ी_दोष_निवारण
वर-कन्या दोनों की राशि एक ही हो लेकिन जन्म नक्षत्र भिन्न-भिन्न हो या दोनों का जन्म नक्षत्र एक ही हो और राशि भिन्न हो तो नाड़ी और गण दोष प्रभावशाली नहीं बनेगा। इसी प्रकार दोनों के जन्म नक्षत्र एक हो परन्तु नक्षत्र चरण भिन्न-भिन्न हो तोे नाड़ी दोष मान्य नहीं होगा, यह शास्त्रसम्मत है। वर-कन्या का एक ही जन्म नक्षत्र हो परंतु चरण भिन्न हो तो नाड़ी दोष नहीं लगेगा। जैसे- वर ईशांत (कृतिका-द्वितीय चरण), कन्या उर्मिला (कृतिका-तृतीय) दोनों की अन्त्य नाड़ी है।
परन्तु कृतिका नक्षत्र के चरण भिन्नता के कारण नाड़ी दोष नहीं लगेगा। इसी प्रकार पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के 3 चरण, 4 चरण इन दोनों में नक्षत्र एक ही है परंतु राशि भिन्नता क्रमश: कुंभ, मीन होने के कारण नाड़ी दोष नहीं बनेगा।
वर-कन्या का एक ही जन्म नक्षत्र हो परंतु राशि भिन्न हो तो भी नाड़ी दोष नहीं लगेगा। दोनों की राशि एक ही हो परंतु नक्षत्र भिन्न हो तो नाड़ी दोष नहीं लगता। ध्यान रखें कि कन्या की जन्म राशि, जन्म नक्षत्र और चरण वर की जन्म राशि, नक्षत्र व चरण से पहले नहीं होने चाहिए, अन्यथा नाड़ी दोष परिहार होते हुए भी विवाह शुभ नहीं होगा। #पंडित_पंकज_मिश्र
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