बुधवार, 20 जुलाई 2022

कालसर्प योग शान्ति का अनुभव प्रयोग। पंडित पंकज मिश्र ज्योतिष कोलकाता।।

#कालसर्प_योग के शान्ति का सबसे अच्छा उपाय।।पंडित पंकज मिश्र ज्योतिष कोलकाता।। कालसर्प_ प्राणप्रतिष्ठा युक्त यंत्र पूजा करे पाठ करे श्राद्ध भक्ति के साथ।। पंकज मिश्र।
ॐ नवकुलाय विद्यमहे विषदंताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्
पीपल या बरगद के पेड़ को प्रतिदिन पानी दें ।
आप इसके लिए राहु एवं केतु की पूजा करें ।राहु एवं केतु के मंत्रों का जाप करें।
कालसर्प दोष निवारण मंत्र का जाप करें |

आप इसके लिए राहु एवं केतु की पूजा करें। राहु एवं केतु के मंत्रों का जाप करें।
राहु के मंत्र– ।।ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:।।

केतु के मंत्र – ।। ऊँ स्त्रां स्त्रीं स्त्रों सः केतवे नमः।।

भगवान शिव की पूजा अर्चना करें। सरसों का दीपक जलाकर “ओम नमः शिवाय“ मंत्र का 21000 बार जप करें।
भगवान श्री कृष्ण का पूजन करें और प्रतिदिन “ओम नमो भगवते वासुदेवाय”  मंत्र का 108 बार जप करें।
महामृत्युंजय मंत्र का 108 बार जाप करें।
कालसर्प दोष निवारण मंत्र का जाप करें |
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। नान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

नमनाग  स्त्रोत्र का पाठ करें।

अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं शन्खपालं ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं कालियं तथा एतानि नव नामानि नागानाम च महात्मनं सायमकाले पठेन्नीत्यं प्रातक्काले विशेषतः तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत इति श्री नवनागस्त्रोत्रं सम्पूर्णं ll

॥ नाग गायत्री मंत्र ॥

ll ॐ नव कुलाय विध्महे विषदन्ताय धी माहि तन्नो सर्प प्रचोदयात ll

लंबे समय से कुंडली में कालसर्प दोष के नाम से आमजन परेशान होता रहा है । 

ये किसी को पता ही नहीं हैं कि एक सामान्य टोटके से इस दोष से मुक्ति पाई जा सकती हैं। असल में जब कुंडली में राहु व केतु के बीच शेष सात ग्रह आ जााते हैं तब कुंडली में कालसर्प दोष बनता है।।
कालसर्प योग मुख्य 12 प्रकार के होते हैं और इसका प्रभाव भी 12 तरह का होता है जो जन्मकुंडली से पता चलता है की कौन सी तरह की है।
एेसे में अमावस तिथि को  वे लोग जिनको रोजगार नहीं मिल रहा हैं, वे जिनका व्यापार नहीं चलता हो, विवाह में समस्या हो या अन्य समस्या हो वे ये #टोटका करें। कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए अमावस के दिन किए गए विशेष उपाय व टोटके बड़ा लाभ देते हैं। इसके लिए अमावस की दोपहर को पीपल के वृक्ष पर जल, दुध व शक्कर मिलाकर कालसर्प दोष से मुक्ति व शांति की प्रार्थना के साथ श्री सर्प सूक्त का जप 21 बार करें। इसके पूर्व सर्प गायत्री का जप 108 बार करें। सर्प गायत्री के जप के बाद ही 21 बार श्री सर्प सूक्त का पाठ करें।

ये है सर्प गायत्री
ऊं नवकुलाय विद्यमहे, विषदंताय धीमहि तन्न: सर्प प्रचोदयात:।

ये है श्री सर्प सूक्त का पाठ

ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा: नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासु‍कि प्रमुखाद्य: नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।
कद्रवेयश्च ये सर्पा मातृभक्ति परायणा। नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य। नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।
सत्यलोकेषु ये सर्पा वासुकिना च रक्षिता। नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य। नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।
पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता। नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता। नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।
ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति। नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।
समुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जंलवासिन: नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।
रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।#पंडित #पंकज_मिश्र_ज्योतिष_कोलकाता_कालीघाट।। #पारद_शिवलिंग की पूजा करे घर में स्थापित कर प्राण प्रतिष्ठित किया गया।।

रविवार, 10 जुलाई 2022

नाड़ी दोष जन्मकुंडली मे ।।

नाड़ी दोष  #जन्मकुंडली मे ।।
#पंडित_पंकज_मिश्र_ज्योतिष_कोलकाता  ।।
नाड़ी दोष होने पर अक्सर भावी दम्पती का गुण मेलापक मान्य नहीं होता है, इसका मुख्य कारण यह है कि 36 गुणों में से नाड़ी के लिए सबसे अधिक आठ गुण निर्धारित हैं। मेलापक में नाड़ी के द्वारा भावी दम्पति की मानसिकता व मनोदशा का मूल्यांकन किया जाता है। नाड़ी दोष होने पर वर-वधू में पारस्परिक विकर्षण पैदा होता है और संतान पक्ष के लिए यह दोष हानिकारक हो सकता है। नाड़ी दोष का परिहार (काट) यदि वर कन्या की कुंडली में उपलब्ध हो तो ऎसे में विवाह करना शास्त्रसम्मत है।

क्या है नाड़ी और दोष ?
भारतीय ज्योतिष में नाड़ी का निर्धारण जन्म नक्षत्र से होता है। प्रत्येक नक्षत्र में चार चरण होते हैं। नौ नक्षत्रों की एक नाड़ी होती है। जन्म नक्षत्र के आधार पर नाडियों को तीन भागों में विभाजित किया गया है, जिन्हें आद्य (आदि), मध्य और अन्त्य नाड़ी के नाम से जाना जाता है। यदि किसी का जन्म पुष्य नक्षत्र में हुआ हो तो उसकी मध्य नाड़ी होगी। इसी प्रकार अन्य सभी 27 नक्षत्रों का नाडियों में विभाजन निम्न प्रकार किया गया है।

आद्य नाड़ी: अश्विनी, आर्द्रा, पुर्नवसु, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद।

मध्य नाड़ी: भरणी, मृगशिर, पुष्य, पूर्वाफाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा, उत्तराभाद्रपद।

अंत्य नाड़ी: कृतिका, रोहिणी, आश्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण और रेवती।

ब्राह्मण राशि पर प्रभावी!
ज्योतिष शास्त्र में समस्त राशियों को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण (जाति) में विभाजित किया गया है। मेष, सिंह, धनु क्षत्रिय वर्ण, वृष, कन्या, मकर वैश्य वर्ण, मिथुन, तुला, कुंभ शूद्र वर्ण और कर्क, वृश्चिक, मीन राशियां ब्राह्मण जाति की हैं। अत: स्पष्ट है कि किसी भी जाति में जन्मे वर वधु की जन्म राशि यदि कर्क, वृश्चिक, मीन (ब्राह्मण जाति की) है तो इन राशियों के जातकों को नाड़ी दोष अधिक प्रभावित करेगा।

#नाड़ी_दोष_निवारण

वर-कन्या दोनों की राशि एक ही हो लेकिन जन्म नक्षत्र भिन्न-भिन्न हो या दोनों का जन्म नक्षत्र एक ही हो और राशि भिन्न हो तो नाड़ी और गण दोष प्रभावशाली नहीं बनेगा। इसी प्रकार दोनों के जन्म नक्षत्र एक हो परन्तु नक्षत्र चरण भिन्न-भिन्न हो तोे नाड़ी दोष मान्य नहीं होगा, यह शास्त्रसम्मत है। वर-कन्या का एक ही जन्म नक्षत्र हो परंतु चरण भिन्न हो तो नाड़ी दोष नहीं लगेगा। जैसे- वर ईशांत (कृतिका-द्वितीय चरण), कन्या उर्मिला (कृतिका-तृतीय) दोनों की अन्त्य नाड़ी है।

परन्तु कृतिका नक्षत्र के चरण भिन्नता के कारण नाड़ी दोष नहीं लगेगा। इसी प्रकार पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के 3 चरण, 4 चरण इन दोनों में नक्षत्र एक ही है परंतु राशि भिन्नता क्रमश: कुंभ, मीन होने के कारण नाड़ी दोष नहीं बनेगा।

वर-कन्या का एक ही जन्म नक्षत्र हो परंतु राशि भिन्न हो तो भी नाड़ी दोष नहीं लगेगा। दोनों की राशि एक ही हो परंतु नक्षत्र भिन्न हो तो नाड़ी दोष नहीं लगता। ध्यान रखें कि कन्या की जन्म राशि, जन्म नक्षत्र और चरण वर की जन्म राशि, नक्षत्र व चरण से पहले नहीं होने चाहिए, अन्यथा नाड़ी दोष परिहार होते हुए भी विवाह शुभ नहीं होगा। #पंडित_पंकज_मिश्र 
 #ज्योतिष_कोलकाता  #Kolkata_best_Astrologer .
  

शनिवार, 9 जुलाई 2022

ओम नमो भगवते वाशुदेवाय संतान गोपाल मंत्र प्रयोग।।

ओम नमो भगवते वाशुदेवाय
संतान गोपाल मंत्र प्रयोग।।
जिन परिवारों में संतान सुख न हो कुंडली में बुध और गुरू संतान प्राप्ति में बाधक हों तब पति-पत्नी दोनों को तुलसी की माला से पवित्रता के साथ 'संतान गोपाल मंत्र' का नित्य 108 बार जप करना चाहिए :-
देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।।
आज प्रायः कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिनको डाक्टर, वैद्य आदि द्वारा इलाज करने पर भी संतान नहीं होती है। जहां मनुष्य के सभी भौतिक प्रयास विफल हो जाते हैं वहां आध्यात्मिक उपाय करने से सफलता प्राप्त होती हैं।
जिन लोगों को संतान होने में बाधाएं आ रही हों अथवा मनोवांछित संतान की इच्छा हो, उन्हें अपने घर में #संतान_गोपाल_यंत्र को स्थापित करके संतान गोपाल मंत्र की साधना करनी चाहिए।
संतान की कामना से सहायक रात्रियां 
मासिक स्राव के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।
१- चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है।
२- पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी।
३- छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा।
४- सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी।
५- आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है।
६- नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है।
७- दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है।
८- ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है।
९- बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है।
१०- तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है।
११- चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है।
१२- पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है।
१३- सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है। #पंडित_पंकज_मिश्र_ज्योतिष_कोलकाता।

कौन सा रत्न धारण करे ?

कौन सा रत्न धारण करे ?
पंडित पंकज मिश्र ज्योतिष  कोलकाता।
लग्न कुंडली के अनुसार लग्न भाव , पंचम भाव और नवम भाव के रत्न पहने जा सकते हैं जो ग्रह शुभ भावों के स्वामी होकर पाप प्रभाव में हो, अस्त हो या श‍त्रु क्षेत्री हो उन्हें प्रबल बनाने के लिए भी उनके रत्न पहनना प्रभाव देता है।

 जो ग्रह शुभ होने के साथ कमजोर है उन्हें रत्न द्वारा बल दिया जाता है , और जो ग्रह कुंडली में अशुभ है जैसे 3, 6, 8, 12 भाव के स्वामी ग्रहों के रत्न नहीं पहनने चाहिए। इनको शांत रखने के लिए उपाय किया जाता है । 

रत्न पहनने के लिए दशा-महादशाओं का अध्ययन भी जरूरी है। केंद्र या त्रिकोण के स्वामी की ग्रह महादशा में उस ग्रह का रत्न पहनने से अधिक लाभ मिलता है। 

आप को रत्न के अनुसार उस ग्रह के लिए निहित वार वाले दिन शुभ घड़ी में रत्न पहना जाता है। पहनने से पहले रत्न को मंत्र जाप करके रत्न को सिद्ध करें, तत्पश्चात इष्ट देव का स्मरण कर रत्न को धूप-दीप दिया तो उसे प्रसन्न मन से धारण करें। 

रत्न सबके लिए नहीं होते। वे सुंदरता की वस्तु न होकर प्राणवान ऊर्जा के स्रोत के रूप में कार्य करते हैं। लेकिन उनका चयन अपने लिए अपने लग्न की राशि के अनुसार करना चाहिए, अन्यथा प्रतिकूल रत्न किसी भी सीमा तक प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। 

रत्न बड़े प्रभावशाली होते हैं। यदि लग्नेश व योगकारक ग्रहों के रत्नों को अनुकूल समय में उचित रीति से जाग्रत कर धारण किया जाए तो वांछित लाभ प्राप्त किया जा सकता है। रत्न विशेष की अंगूठी निर्धारित धातु में बनवाकर धारण करने से विशेष लाभ होता है। 
जन्मकुंडली का सटीक बिचार । कुंडली मिलान रत्न बिचार के लिए पंडित पंकज मिश्र ज्योतिष कोलकाता  ।।